The Diary of a Hermit
I'm just a puppet who can see the strings.
Wednesday, October 20, 2010
परिणीता
मधुर मिलन के दिव्य स्वपन से जलाई थी जो तूने ज्वाला।
बुझ गयी वो जब देखी पर मनुज हेतु उसके हाथों में वरमाला।
है निष्ठुर प्रेम, त्याग इसे , उठा ले मदिरा।
देख परिणीता तेरी आज बनी है मधुशाला।
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